संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित। Motivational Quotes Shloka In Sanskrit

Motivational Quotes Shloka In Sanskrit

Truth Quote In Sanskrit

सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् ब्रूयात् सत्यमप्रियं। प्रियं नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः॥

सत्य बोलें, प्रिय बोलें पर अप्रिय सत्य न बोलें और प्रिय असत्य न बोलें, ऐसी सनातन रीति है ॥

Murkh Quote In Sanskrit

मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि गर्वो दुर्वचनं तथा। क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः॥

मूर्खों के पाँच लक्षण हैं – गर्व, अपशब्द, क्रोध, हठ और दूसरों की बातों का अनादर॥

उद्यमेनैव हि सिध्यन्ति,कार्याणि मनोरथै। हि सुप्तस्य सिंहस्य,प्रविशन्ति मृगाः॥

प्रयत्न करने से ही कार्य पूर्ण होते हैं, केवल इच्छा करने से नहीं, सोते हुए शेर के मुख में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते हैं।

अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च। पराक्रमश्चबहुभाषिता दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥

आठ गुण पुरुष को सुशोभित करते हैं – बुद्धि, सुन्दर चरित्र, आत्म-नियंत्रण, शास्त्र-अध्ययन, साहस, मितभाषिता, यथाशक्ति दान और कृतज्ञता ।

क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं साधयेत् क्षणत्यागे कुतो विद्या कणत्यागे कुतो धनम्॥

क्षण-क्षण विद्या के लिए और कण-कण धन के लिए प्रयत्न करना चाहिए। समय नष्ट करने पर विद्या और साधनों के नष्ट करने पर धन कैसे प्राप्त हो सकता है ।

गते शोको कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः॥

बीते हुए समय का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के लिए परेशान नहीं होना चाहिए, बुद्धिमान तो वर्तमान में ही कार्य करते हैं ।

उदये सविता रक्तो रक्त:श्चास्तमये तथा। सम्पत्तौ विपत्तौ महतामेकरूपता॥

उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी लाल होता है, सत्य है महापुरुष सुख और दुःख में समान रहते हैं ।

व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं। आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्॥

व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है। निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं ।

विदेशेषु धनं विद्या व्यसनेषु धनं मति: परलोके धनं धर्म शीलं सर्वत्र वै धनम्॥

विदेश में विद्या धन है, संकट में बुद्धि धन है, परलोक में धर्म धन है और शील सर्वत्र ही धन है ।

अभिवादनशीलस्य नित्यं वॄद्धोपसेविनः चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्

विनम्र और नित्य अनुभवियों की सेवा करने वाले में चार गुणों का विकास होता है – आयु, विद्या, यश और बल ।

धॄतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्

धर्म के दस लक्षण हैं – धैर्य, क्षमा, आत्म-नियंत्रण, चोरी न करना, पवित्रता, इन्द्रिय-संयम, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना ।

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